एक विचार

कहानी

2019 की दिसम्बर की 12 ता थी हम अपनी गुजरात की यात्रा पर थे दिल्ली से 2 लोग राजधानी में 1st ऐसी का कूपे । वैसे सब कुछ व्यवस्थित ढंग से था सब कुछ यथा योग्य।फिर ट्रैन अटेंडेंट महोदय का आगमन हुआ और उन्होंने नम्रता पूर्वक मुस्कुराते हुए कहा कि 2 महिलाएं कुछ एडजस्टमेंट की प्रार्थना लेकर मेरे पास आई हैं यदि आप दोनों अगले 4 स्टेशन तक उनकी प्रार्थना स्वीकार करने की कृपा करें । हमने पूरी बात सुनी और अपनी सहमति देदी ।औपचारिक धन्यवाद के उपरांत हम दोनों उनकी जगह कूपे 12आ में शिफ्ट करा दिए गए जहां 2 सज्जन व्यक्ति ओर थे धूमिल मुस्कान के साथ हम उसमे सेट हो गए चलो 3 घण्टे की बात है अन्य पुरूषों की मौजूदगी शायद उन महिलाओं के लिए असहज स्थिति थी।
अभी स्नैक्स इत्यादि सर्व हुआ था सो सब अपने अपने खाने में व्यस्त थे।
फिर पैंट्री स्टाफ़ आया और डिनर आर्डर लेकर चले गया ।यहाँ तक सब सामान्य था डिनर सर्व होते ही 3 व्यक्ति और शामिल हो गए उन दो सज्जन पुरुषों के मित्रों के रुप मे। 
अब दिक्कत साफ दिख रही थी कि उनमें से एक व्यक्ति ने 1 बोतल खाकी कागज में लपेटी हुई निकाली। हम से क्षमा करें कह पहले से सर्वे 6 डिस्पोजल गिलास में उन्होंने आधिकारिक तरीके से अपने साथियों के गिलास में डाल भी ली बर्फ पानी भी उनके पास था ।अब हमें सब माजरा समझ आ गया।उन दोनों महिलाओं को पूर्ण प्लानिंग के साथ वहाँ से विस्थापित किया गया था मैं उठा ट्रैन अटेंडेंट के पास गया वो पेंट्री में था।आओ आओ शास्त्री जी खाना लीजिए और कोई दिक्कत तो नही ।मैं सकते में देखो कितना सभ्य आदमी है सब कुछ गड़बड़ करके भी कितना सहज है।मैं कुछ कहता इसके पहले बोला सर् माफ करना वो रूलिंग पार्टी के सदस्य हैं और में मजबूर था ।बस यहाँ से 3 घण्टे उपरांत अर्थात रात 1.30 hrs पर आपको बापिस अपना कूपे मिल जाएगा ।मैंने ऐसे प्रोफेशनल व्यक्ति से उलझना ठीक न समझ उसी के जैसे मुस्कान बिखेरी और उठ कर चला आया
उपरोक्त चर्चा में मैं यहां ये विचार आप सभी पाठकगणों से सांझा करना चाहता हूँ कि भारत मे या विदेश में भी हर जगह ऐसे लोगों की कमी नहीं है।हमारे देश के रेलवे सिस्टम ने बहुत विकास किया है लेकिन अभी भी लोगों के सोच में समसामयिक परिप्रेक्ष्य अनुसार अभी बहुत समय लगने वाला है जिसके चलते हम लोग जो सब कुछ प्लान करने बाबजूद पैसा खर्च करने के बाद भी उन सुविधाओं का आनंद नहीं ले पाते हैं