मेघों की तुम मेघा रानी-गुरुदीन वर्मा

कविता मंगल विमर्श

(शेर)- जैसे जल को तरसे मछली, वैसे मेघ को तरसे धरती।
मेघ बिना नहीं मिलता पानी, मेघ बिना यह बंजर धरती।।
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मेघों की तुम मेघा रानी, मेघ तुम बरसाओ।
करके वर्षा मेघों की, धरती की प्यास मिटाओ।।
मेघों की तुम मेघा रानी———————–।।

किसको जरूरत नहीं जल की, यह जल भी मिलता है तुमसे।
तुम ही करती यह हरियाली, ताल- तलैया भी भरते हैं तुमसे।।
खाली नंदियाँ और सागर, जल से तुम भर जावो।
करके वर्षा मेघों की, धरती की प्यास मिटाओ।।
मेघों की तुम मेघा रानी———————–।।

नाचे मोर- पपैया और गाये, आवो आवो मेघा तुम।
तपती धरती कर दो शीतल, खूब बरसकर मेघा तुम।।
बंजर भूमि- उपवन- फसलों को, आकर हर्षाओ।
करके वर्षा मेघों की, धरती की प्यास मिटाओ।।
मेघों की तुम मेघा रानी———————–।।

पूजा- प्रार्थना तुम्हारे लिए, हर कोई कर रहा है।
तुमको रिझाने को राग मल्हार, यह जग गा रहा है।।
सावन- भादो तुम पुकारे, मेघा आवो आवो।
करके वर्षा मेघों की, धरती की प्यास मिटाओ।।
मेघों की तुम मेघा रानी———————–।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)