“योग”

कविता मंगल विमर्श

  *”योग”*

जाति न कोई धर्म से,योग है तन-मन से,

आज योग का संबंध,जीवन – संचार है।

आत्मा-परमात्मा-योग,संबंध योग मन से,

अष्टांग – योग साधना,जीवन – आधार है।

आसन प्राणायाम से,तन सोना बन जाय,

लगाम श्वास प्रश्वास, योग की पुकार है।

पूरक – रेचक कर, योग से निरोग अब ,

आज चहुँ ओर भरे, योग की हुँकार है।

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देखें विश्व पटल में,जयकार गूँज रही,

योग से निरोग होते,ये सारा संसार है ।

भारत ने विश्व में है,दिखाई प्रभाव योग 

गाँव – नगर योग में, लगते कतार हैं।

है योग रहस्य गुरु,सदा मिलता प्रकाश,

संभावना- संभव है, योग की बयार है ।

अष्टांग योग साधना, समाया सारी संसार,

विश्व पटल में आज, गुंजे ओमकार हैं

___✍गुलज़ार सिंह यादव “गुल”

          अंबिकापुर (छत्तीसगढ़ )

          मो. नं. 9406140170

*”योग”*