बाल गीत -प्यारी साइकिल (डॉ शंकर शर्मा ‘अचूक’)

कविता


कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल,
लगती सबसे न्यारी साइकिल।
कहते बाइसिकल भी इसको,
पड़े जरूरत जब भी जिसको।
मिल सब करें सवारी साइकिल,
कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल।
ऊँचा नीचा पग पथरीला,
छोटा अथवा बड़ा कबीला।
बोझा से नहीं हारी साइकिल,
कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल।
कई तरह के रूप बनाती,
गरमी बरसा धूप सुहाती।
तेरी और हमारी साइकिल,
कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल।
भांति-भांति के रंग सुहाते,
बाबा अम्मा लेकर आते।
बच्चों जग हितकारी साइकिल,
कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल।
प्रेम भाव नित मन में इसके,
सबके मिलती रहती हँसके।
कह अचूक अब रहना हिल मिल,
कितनी प्यारी-प्यारी साइकिल।