कहानी

अयोध्या विशेश संस्मरण :Jagad Guru Shankaracharya Swami Shree Nishchalanand Saraswati ji ..संदेश

श्रीहरिःश्रीगणेशाय नमःमानवाधिकार की सीमा में श्रीरामजन्मभूमि को पुन: प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार lध्यान रहे कि कोई भी देश कितने ही वर्षोंतक परतंत्र क्यों न रहा हो, उसे मानवाधिकार की सीमामें स्वतंत्रता का पूर्ण अधिकार प्राप्त रहता है । साथ ही परतंत्रताकी अवधिमें अराजकतत्त्वों के द्वारा प्रतिष्ठित परतंत्रताके प्रतीकोंको निरस्त करनेका पूर्ण अधिकार स्वतंत्र होने पर सुलभ रहता है। तद्वत् परतंत्रताकी अवधिमें उसके लाञ्छित, विकृत और विध्वस्त प्रशस्त मानबिन्दुओंको स्वतंत्र होने पर पुन प्रतिष्ठित और उद्भासित करनेका पूर्ण अधिकार प्राप्त रहता है । उदाहरणार्थ परतंत्रता के दिनोंमें भारत की राजधानी दिल्ली में यत्र-तत्र प्रतिष्ठित वायसराय की मूर्तियों को तत्कालीन केन्द्रीयशासनतंत्र ने निरस्त किया । तद्वत् लाञ्छित, विकृत और विध्वस्त सोमनाथ मन्दिर और शिवलिङ्ग को तत्कालीन केन्द्रीय शासनतंत्र ने पुन निर्मित और प्रतिष्ठित किया । इस तथ्यको श्रीरामजन्मभूमि, श्रीकृष्णजन्मभूमि और श्रीकाशीविश्वनाथादिके सन्दर्भमें ध्यान रखकर क्रियान्वित करने की आवश्यकता है ।इस सन्दर्भमें यह स्मरण रखना भी अत्यावश्यक है कि विखण्डनकारी अराजक तत्त्वोंके द्वारा विखण्डित और विभाजित भूभागको भी शक्ति-समन्वित परस्पर सद्भाव और सम्वादपूर्वक प्राप्त करनेका पूर्ण अधिकार स्वतंत्रराष्ट्रको सुलभ रहता है । सन् 1839 में अफगानिस्तान, सन् 1911 में श्रीलङ्का, सन् 1935 में वर्मा, सन् 1947 में विखण्डित और विभाजित पाकिस्तानकी ओर ध्यान केन्द्रित करना शासनतंत्रका पवित्र दायित्व है । तद्वत् स्वतंत्र भारतके सत्तालोलुप और अदूरदर्शी प्रधानमत्रियोंके द्वारा विखण्डित और विभाजित भूभागको यथोचित विधासे प्राप्त करनेका प्रकल्प क्रियान्वित करना भी आवश्यक है । सन् 1950 में चीनने तिब्बतको हड़प लिया । सन् 1954 में भारतसरकारने पश्चिम बङ्गालका बेरूबाड़ी क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (बाङ्गलादेश) को सौंपा । सन् 1958 में चीनने भारतके सीमावर्ती क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया । सन्1962 में चीनने भारतकी बासठ हजार वर्गमील भूमिपर अधिकार जगा लिया । सन् 1963 में भारतसरकारने अण्डमान नामक द्वीपसमूहका सर्व नामक द्वीप वर्माको सौंपा । सन् 1972 में भारतसरकारने कच्चातीबूद्वीप श्रीलङ्काको सौंपकर देशको विखण्डित किया । सन् 1982-83 में चीनने भारतके अरुणाचलक्षेत्रके भूभागको हड़प लिया । सन् 1992 में भारतके शासनतंत्रने तीन बीघा भूभाग बाङ्गलादेशको सौंप कर भारतको विखण्डित किया ।अयोध्या ऐतिहासिक है ; अत: उसके संस्थापक मनु और अयोध्याधिपति मनुपुत्र आदि राजा इक्ष्वाकु भी ऐतिहासिक मान्य हैं।वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड सर्ग 70में सूर्यवंशका वर्णन है। उसके अनुसार सागरकी ऐतिहासिकताके सदृश इक्ष्वाकुवंशी सगरकी ऐतिहासिकता सिद्ध है। तद्वत् भागीरथीकी ऐतिहासिकताके सदृश इक्ष्वाकुवंशी भगीरथकी ऐतिहासिकता भी सिद्ध है। तद्वत् रामेश्वरम्, रामसेतुकी ऐतिहासिकताके सदृश इक्ष्वाकुवंशी प्रभु रामकी ऐतिहासिकता भी सिद्ध है।श्रीरामभद्रके पुत्र लव तथा कुशकी परम्पराके क्षत्रियोंका वंश आज भी उज्जीवित है। वंशप्रवर्तककी ऐतिहासिकता पर कटाक्ष स्वयंको उपन्यासका कल्पित पात्र सिद्ध करनेके सदृश उपहासास्पद है। गोत्र प्रवर्तक ऋषियोंकी , उनके पूर्वज ब्रह्माकी, उनके उद्भावक नारायणकी और नारायणके अवतार श्रीरामकी ऐतिहासिकता सिद्ध है। विश्वके सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद जिसकी प्रामाणिकता संयुक्त राष्ट्रसङ्घादिको( Memory of The World) भी मान्य है, उसमें श्रीराम और उनके पूर्वजोंका वर्णन है, उसीका विस्तारपूर्वक वर्णन वाल्मीकीय रामायण और महाभारतादिमें है। शुक्ल यजुर्वेदसे सम्बद्ध मुक्तिकोपनिषत् में श्रीराम और हनुमान् का सम्वाद सन्निहित है। वंशपरम्परा तथा गुरुपरम्पराके प्रवर्तक भगवान् नारायणकी शिष्यपरम्परा में मुझ शङ्कराचार्यका स्थान 154 वाँ है। भगवत्पाद श्रीशङ्कराचार्य दसवें, श्रीवेदव्यास छठे, श्रीवसिष्ठजी तीसरे गुरु मान्य हैं। वेदशाखाके प्रवर्तक तथा महाभारतके रचयिता श्रीवेदव्यास हैं; अत एव वेदशाखाप्रभेदकी तथा महाभारतकी ऐतिहासिकताके सदृश श्रीवेदव्यासकी ऐतिहासिकता सिद्ध है।श्रीवसिष्ठ ही श्रीरामभद्रके कुलगुरु मान्य हैं। श्रीराम और वसिष्ठ दोनोंकी ऐतिहासिकता सिद्ध है।वाल्मीकीय रामायणके सदृश ही उसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि और उनके समकालिक श्रीरामकीऐतिहासिकता भी अकाट्य है।प्रजापति मनुविनिर्मित अयोध्याके प्रथम अधिपति आदिराज मनुपुत्र इक्ष्वाकु(अर्थववेद संहिता १९.३९.९) मान्य हैं। अतएव मर्त्यलोककी प्रथम राजधानी अयोध्या सिद्ध है- मनु: प्रजापति: पूर्वमिक्ष्वाकुश्च मनो: सुत:। तमिक्ष्वाकुमयोध्यायां राजानं वद्धि पूर्वकम्।। (वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड सर्ग 70. 21)अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्।। (वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड सर्ग 5.6) मनु: इक्ष्वाकवे स्वपुत्राय आदिराजाय अब्रवीत् (गीता 4.1 शाङ्करभाष्य) श्रीरामजन्मस्थल अनुपम अद्भुत मनोरम दिव्य धाम है । इसके पूर्वमें लोमश, पश्चिममें विघ्नेशतथा दक्षिणमें वसिष्ठ सुशोभित हैं । यथा – विघ्नेश्वरात्पूर्वभागे वसिष्ठादुत्तरे तथा । लोमशात्पश्चिमे भागे जन्मस्थानं तत स्मृतम् ।। (स्कन्दपुराण- वैष्णवखण्ड -अयोध्यामाहात्म्य10.19)