- पापा के बाद
कुछ बेहद जरूरी काम पापा निपटाते थे
जब थककर आते थे
माँ पानी का गिलास पकड़ाती थी
पाप की सारी थकान दूर हो जाती थी
पापा नहीं रहे
वे जरूरी काम अब माँ निपटाती है
थककर आती है
कोई पानी का गिलास नहीं थमाता
माँ की थकान जमा हो रही है
पहले हर बात में दो सलाह मिलती रही
माँ की नहीं पसंद आयी तो पापा की सलाह मान ली
अब विकल्प नहीं है
पहले घर लौटते ही
पेड़ पौधे मुस्कुरा उठते थे
अब जब लौटती हूँ घर
पत्तियाँ मुस्कुराती हैं
शाखें डबडबा उठती हैं ।
2) लज्जा परंपरा है
माँ टीका कितना सुंदर है?
रख दे ठीक से!
मुझे दोगी?
नहीं?
क्यों?
भाई की पत्नी को दूँगी।
क्यों?
तू पराया धन है।
तुम्हें क्यों दूँगी?
बेटी के हाथ से लेकर
माँ ने डिब्बे में रख दिया,
बेटी ने उस दिन ही अपनी सब चाहे डिब्बे में रख दी
और परायेपन को नम आँखों से ढोती रही,
उसकी चुप्पी को लज्जा और त्याग को
परंपरा कह दिया गया।
3) .दीदी
एक दीदी है मेरी
बस एक!
दो साल बड़ी
बिनती रहती थी मुझको
मैं पड़ी रहती थी
थोड़ा यहाँ,थोड़ा वहाँ
न जाने कब से
वह रच रही थी मुझको
खींच दिया खाका उसने
हम सब भाई बहनों का
वह गढ़ती थी प्रतिमा अद्भुत
रह गया बताना हम सब से
वह प्रथम शिल्पी थी
जीवन में हम सब के
उसका स्वप्न कभी नहीं रहा अकेला
उसमें हम सबके सपनों का मेला
बहुत कम उम्र में वह जान गयी थी
वह हम सबकी है
और उसे ही गढ़ना है हम सबको।
4) वर्कला की है अम्मा
भाग-1
वह चंदन का पेड़ कितना धीरे-धीरे बढ़ रहा है?
अम्मा कितनी जल्दी-जल्दी बूढ़ी हो रही है!
सूर्य को अर्घ्य देने जाती है
तो दरवाजे और तुलसी चौरा के बीच खड़ा मिलता है
वह दुबला पेड़
तुलसी चौरा तक जाने के क्रम में
उसे पकड़ कर लेती है तीन छोटे डेग
अम्मा की हाथ से हल्का मोटा तना
लगता है लाठी हो
बुढ़ापे की
अम्मा सा ही ढीला-ढीला
अम्मा आज तिरानवे की हो गयी है
उसे जन्मदिन मनाना अच्छा लगता है
वह मंदिर जाना चाहती है
लाॅक डाउन है
करोना के डर से सब मंदिर बंद हैं
पर परिप पायसम बनना तय है
अम्मा कल ही सब बच्चों, नाती-नतिनियों, पोते-परपोतों, परनतनियों, रिश्तेदार, पड़ोसी सब को बता चुकी है
कि कल उसका जन्मदिन है
सुबह से फोन टुनटुना रहा है
अम्मा मुस्कुरा रही है
भाग-2
परदेसी हो चुके बच्चों को याद कर चमक उठती है
अम्मा की आँखें
अनुपस्थित बच्चे स्वप्न हो जाते हैं
उपस्थिति में मेहमान
स्वप्न से मेहमान
और मेहमान से स्वप्न बने बच्चों
को टोहती अम्मा
कभी कभी फूलों में पानी डालते वक्त फफक उठती है
और वह
उस मृत
पति की तस्वीर के सामने कुर्सी लगाकर बैठ जाती है
जो न स्वप्न में आता है
और न आतिथ्य का सुख दे सकता है।
अनामिका अनु
5) .प्रतीक्षा बाती
मैं दहक रही हूँ
माथे की कैद में फड़फड़ाते शोकगीत
बारिश की ठंड रात
में बोलते झींगुर और भींगते झूले
के आस पास
एक उदासी बैठी है
उसने अभी-अभी बुझायी है
बाती प्रतीक्षा की