लघुकथा _हरी सब्जी ( पर्यूषण पर्व पर)

कहानी

“यह क्या है ?
रोज रोज यह बड़िया ,गट्टे ,सुखी फलियां, पापड़ की सब्जी …,”
“क्यूं नही ,आलू प्याज खा सकते ? क्यूं नही ? फ्रूट्स ,हरी सब्जियां ला सकते ? मुझसे नही खाई जाती यह सुखी सब्जियाँ ,..”
गुस्से में टेबल पर प्लेट सरका रोहित भुनभुनाता अपने कमरे में चल गया।

“पर्युषण पर्व में आठ दिन हरियाली घर मे नही आएगी, ” बस दादी के इस ऑर्डर पर ही बेबस माँ खाना बना रही थी ।

“दादीमां.. हरी सब्जियां हम थोड़ी तोड़ कर लाते है, जो हमारे हिस्से पाप आएगा ? फिर आठ दिन यह जुल्म क्यों ?”
सामायिक से उठते ही रोहित ने दादी पर सवाल दागने शुरू कर दिए।

“बेटा,… उस दिन टीवी शो में तुम “स्टार सीने अवार्ड” देख रहे थे ना , तब कोई भी प्राइज लेने वाला अपने माता-पिता डायरेक्टर और अन्य को क्यों क्रेडिट दे रहा था ? “
” तुम भी जब स्कूल टॉप किया ,तो फंक्शन में कहा था न ,मेरे मम्मी -पापा , टीचर के सहयोग से मुझे यह गौरव के पल मिले है।”
तरक्की, शोहरत अकेले नही कई लोगो का टीम वर्क होता है यानी तुम्हारी खुशी में कई लोग शामिल होते है , कई लोग हमारी कामयाबी में हमारी प्रेरणा बनते है।

“ठीक उसी तरह बेटा किसी के पाप में भी हम भागीदार होते है।”
“तुम्हे पता है ना ..नवरात्रों , रमजान में या अन्य पवित्र दिनों में लोग नॉनवेज नही खाते ..”
“क्यू.. ? क्या वो खुद जानवर को मारने जाते है? वो भी तो कह सकते है ,हमने तो पशु वध नही किया , दुकानदार को उसका पाप लगेगा। “

“पर ऐसा नही बेटा ,..उनके पाप का भागीदार खाने वाला भी होगा ,क्योंकि काटने वाले ने ग्राहक को खिलाने के लिए ही तो मुर्गा या कोई अन्य जानवर काटा।”

“बस.. इसीलिए हम आठ दिन हरी सब्जी तोड़ने या जमीकंद से हुई जीवहत्या के लिए इन सब वस्तुओं का परित्याग करते है ताकि इन पवित्र दिनों में पाप के भागी न बने।”

“हम किसी के अच्छे काम मे ही नही ,बुरे काम के पार्टनर भी जाने अनजाने बन जाते है।”
दादी की इस बात का असर उसको डायनिंग टेबल तक खींच लाया।

नेहा नाहटा ,दिल्ली