ढूँढने गये जो सादगी को हम अभी
मिलती हैं कहीं कहीं और कभी कभी ,
मेंटन दिखावें को सबने खूब किया हैं
विरला हैं वो जो सादगी में जिया हैं
अनमोल सादगी का कहीं मोल ही नहीं
वो पाक सादगी कहीं मिलती नहीं
जो हैं ही नहीं वो ,ऐसा बन के जिया हैं
सजावट ने बनावट का ढोंग किया हैं
हक़ीक़त छुपाने का क्या हुनर पाया हैं
दिखावें का आज कैसा दौर आया हैं
अपनों का चेहरा उसी को नज़र आया है
जिसपें मुश्किलों का कठिन दौर छाया है
होती है जहां नित पूजा पाठ और अर्चना
मिलता है सच्चा सुख जब साथ हो अपना
मुखौटे पर मुखौटा आज सबने हैं पहना
बाक़ी हैं दिखावा ,छलावें में न उलझना
सुषमा पारख
स्वरचित ,मौलिक
सिलचर ,असम