तू डरकर इस समाज से

कविता

तू डरकर इस समाज से,

इसके बनावटी नियमों और नीतियों से,

डरकर इसकी झूठी शान और मर्यादा से,

डूबकर शर्म के गर्त में तुम,

मत बनाना अपनी जिंदगी को दोज़ख।

मैं जानता हूँ इस समाज को,

एक समय था,

जब मैं इसको प्यारा था,

मैं इसकी आँखों का तारा था,

क्योंकि उस वक़्त मैं आबाद था,

और करता था मेरी मदद यह समाज।

लेकिन अब मैं बेरोजगार हूँ ,

और कहा नहीं मुझसे समाज ने,

कि मत करना तू कोई फिक्र,

कि नहीं है यहाँ अकेला जहां में।

हाँ, बहुत दगाबाज है यह समाज,

इसकी व्यंग्यात्मक शैली से,

मत करना खुद को निराश तू ,

इसके शीशे को देखकर,

मत खुद को गुमराह करना।

जो कुछ करना है तुम्हें ही करना है,

अपना सहारा खुद तू है,

मत बुझाना अपनी जिंदगी के चिराग,

कभी होकर हताश और उदास,

तू डरकर इस समाज से।

शिक्षक एवं साहित्यकार

गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद

तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)